Monday 1 July 2013

‘मानव उत्थान के परिप्रेक्ष्य में गांधीजी मेरे राहनुमा’ Book




गांधीजी और जयप्रकाशजी ने कही थी वैसी पक्ष्ररहित शासन व्यवस्था के लिये
नानुभाई नायक की सात पुस्तकों में से प्रथम पुस्तक
मानव उत्थान के परिप्रेक्ष्य में गांधीजी मेरे राहनुमा
चुनाव द्वारा सरकार चुनने की शुरुआत हुई तब जनता को लगा कि लोकतंत्र आ गया है. किन्तु संसद का व्यव्हार देखकर गांधीजी ने संसद को वेश्या और बाँझ कहा था. फिर उन्होंने दलितों और दरिद्र नारायणों को सुख ही मेरा ईश्वर और सत्य है कहकर नयी शासन व्यवस्था की खोज शुरू की जो मानव उत्थान के लिये भारत से आगे जाकर विश्वके स्वातंत्रय तक जा सके. इस पुस्तक में गांधी विचार से हम कितने दूर जा चूके है यह बात विस्तार से दिखाकर गांधीजी की और उसके बाद उसे आगे बढाते हुए जयप्रकाशजी ने कही थी वैसी पक्षरहित शासनव्यवस्था की चर्चा की है.
साथ में PDF फाइल पूरी किताब की है. आप इसे पढ़ें और उसके विचार अपने मित्रों में प्रसारित करें. हम साथ मिलकर एक ऐसा विचार-आंदोलन चलायें कि गांधीजी और जयप्रकाशजी ने सोची थी वैसी पक्षरहित शासन व्यवस्था की स्थापना कर सकें.s


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